चांदी के चंद टुकड़ो के लिए अपना ज़मीर नही बेचूंगा
सन 88-89 को वरिष्ठ पत्रकार ए कुमार को दिए साक्षात्कार में जिस हुतात्मा ने ये बात कहा था आज उस महान विप्लवी,क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय मोहित कुमार बनर्जी 31 वी पुण्यतिथि है।
5 मार्च 1917 में जन्मे मोहित बाबू काशी के पाण्डे घाट स्थित आवास में माता सुनैना देवी के स्वर्ण गर्भ से जन्मे
मोहित जी के पिता डॉ0 तारा चरन बनर्जी एक प्रसिद्ध डॉक्टर और उनके पितामह स्वर्गीय बाबू हरप्रश्नन बनर्जी डिप्टी कलेक्टर शाहजहांपुर, बदायूं एवं प्रपितामह स्व• बाबू काशीप्रसाद बनर्जी डिप्टी कलेक्टर बनारस थे।
मोहित भाई बचपन से ही बहुत ही शांत और कुशाग्र बुद्धि के व्यक्तित्व के धनी थे। बाकी सात क्रांतिकारी भाइयों की तरह मोहित जी के दिलों में भी बचपन से ही क्रांति की ज्वाला धधकती रही।
इलाहाबाद और फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में मोहित बाबू के साथ पंडित कमलापति त्रिपाठी ,पंडित जवाहरलाल नेहरू, के डी मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन, डॉक्टर काटजू, कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के भाई श्री सोमेंद्र नाथ टैगोर ,आर एस पी के सुरेश भट्टाचार्य ,गया षड्यंत्र केस के केशव शर्मा, काकोरी षड्यंत्र केस के मन्मथ नाथ गुप्त ,अजय कुमार बासु भगत सिंह के साथी भूपेंद्र सान्याल ,जितेंद्र सान्याल ,काला पानी की सजा प्राप्त पंडित परमानंद ,अपने बसंत कुमार इत्यादि क्रांतिकारी साथियों के साथ वर्षो बंदी थे। मोहित अपने बड़े भाई मनिंद्र की तरह बहुत बार भूख हड़ताल अनशन करने के कारण जेल में प्रख्यात थे जिसके कारण उनको भारी से भारी यातनाएं सहनी पड़ी उसी दौरान अंग्रेजों के द्वारा उनके सारे दांत उखाड़ दिए गए क्योंकि उनका मानना था कि मोहित के पास बहुत सारे ऐसे राज दबे हैं जो अंग्रेजों के बहुत काम आने वाले थे परंतु मोहित को टस से मस करना नामुमकिन ही नहीं असंभव था ,दांत उखाड़ने के साथ-साथ मोहित के पैरों की नाखून भी उखाड़ दी गई थी और सर में गंभीर चोट आने के कारण मोहित को जेल से ही आजीवन दौरे और झटके पढ़ने शुरू कर दिए थे ।बर्फ की सिल्ली के ऊपर लेटाना ,नांक और मुंह से जबरदस्ती खाना खिलाना, नंगे बदन को बेतों से छलनी करना यह सब जेलों में मोहित व अन्य क्रांतिकारियों के साथ आम बात हुआ करती थी ।मोहित बाबु को भी आजादी, तमाम क्रांतिकारी साथियों के साथ देश आजाद होने के पश्चात 1947 में हुआ।
आजादी के पश्चात मोहित भाई गांधी आश्रम की सेवा में लग गए और इलाहाबाद स्थित जवाहर स्क्वायर में रहकर खादी के कपड़ों को सिल कर गांधी आश्रम में दिया करते थे व सिलाई का काम करते हुए वह अपने और अपने परिवार का जीवन यापन किए। मोहित बाबू की मृत्यु बादशाही मंडी इलाहाबाद तत्कालीन प्रयागराज में उस घर में हुआ जिस घर में हुए आजादी के बाद आ गए थे ,जहां पर भगत सिंह की माता की चरण धूलि भी पड़ी है उसी ऐसा ऐतिहासिक घर में मोहित बाबू की मृत्यु 21 नवंबर 1990 में हुई ।एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिसने अपनी जीवन को देश के लिए आहूत कर दी। मोहित के ऐसे तमाम लेख प्रकाशित हुए जिसमें उन्होंने कई बार कहा कि चंद चांदी के टुकड़ों के लिए अपना जमीर नहीं बेचूँगा यह बात उन्होंने उस परिपेक्ष में कहा था जब उनको राज्यसभा की टिकट देने की पेशकश की गई थी भ्र्ष्ट राजनेताओं कार्यों का डटकर विरोध करते थे और अपना विरोध तत्कालीन सरकारों को लिखकर बताया करते थे ।वे कभी भी किसी भी त्योहारों में नए कपड़े नहीं सिलवाते थे और ना ही पहनते थे उनका कहना था जब तक देश में कोई भी गरीब बिना कपड़ों के रहेगा तब तक हम नए कपड़े नहीं पहनेंगे ऐसे ही सोच के थे अमर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क्रांतिकारी मोहित कुमार बनर्जी हम उन्हें आज उनकी 31 वीं पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
Jan Tapis