रोशन बाग के मंसूर अली पार्क में चल रहे सीएए विरोधी आंदोलन के बीच इसके समर्थन पर मतभेद उभरने लगा है। 27 फरवरी को सामाजिक कार्यकर्ताओं हर्ष मंदर, अपूर्वानंद, शबनम हाशमी, सईदा हमीद द्वारा शांति और सदभावना के लिए आंदोलन की समाप्ति की अपील पर नागरिक समाज से जुड़े लोगों में मतभिन्नता उजागर हुई है।
सोमवार को नागरिक समाज की बैठक के बाद मतभेद खुलकर सामने आ गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता रविकिरन जैन के निवास पर यह बैठक आंदोलन समाप्ति की अपील पर विचार के लिए आयोजित की गई थी। बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया था कि नागरिक समाज मंसूर पार्क के आंदोलन का सर्वसम्मति से समर्थन करता है। मगर बैठक में शामिल रहे जफर बख्त ने उस बयान को गलत करार दिया है। उन्होंने मीडिया को जारी विज्ञप्ति में कहा है कि बैठक उनके ही प्रयास से की गई थी जिसमें एक पक्ष इस बात से सहमत था कि फिलहाल इस आंदोलन को स्थगित कर देना चाहिए मगर मीडिया को जारी विज्ञप्ति में सरासर झूठ कहा गया कि सब आंदोलन को जारी रखने पर सहमत हैैं। जफर बख्त के मुताबिक, न्यायमूर्ति अमर सरन उस बैठक में थे जरूर लेकिन वह नागरिक समाज का हिस्सा नहीं हैैं। पदमा सिंह, उत्पला शुक्ला, अंशु मालवीय, गायत्री गांगुली, फरमान नकवी समेत बहुत से लोग इस विचार के हैैं कि फिलहाल आंदोलन को स्थगित करना शांति के लिए उचित होगा।
जफर बख्त ने विज्ञप्ति में कहा है कि जिस तरह से नागरिक समाज की विज्ञप्ति में तथ्यों का गला घोंटा गया है उससे वह बहुत दुखी हैैं। ऐसा लगता है कि कुछ राजनीतिक तत्व नागरिक समाज के स्वतंत्र व्यक्तित्व पर कब्जा करना चाहते हैैं। नागरिक समाज की कार्य पद्धति अलोकतांत्रिक है। ऐसे में उन्होंने नागरिक समाज के हर फैसले से खुद को अलग कर लिया है।