शफ़ाख़ाने में ख़त्म थीं सब दवाएँ

 

डॉ सीमा विजयवर्गीय

शफ़ाख़ाने में ख़त्म थीं सब दवाएँ

बचे हैं अगर तो ये माँ की दुआएँ
मुसीबत में मेरे सहारा बने जो
लगें सैकड़ों उनको मेरी दुआएँ
गिले और शिकवे भला क्यों करें अब
बदल ही गईं जब सभी धारणाएँ
हवा भी अलग है फ़ज़ा भी अलग है
है अंँधियार कैसा, न सूझें दिशाएँ
सभी के दिलों में ग़मों के हैं बादल
किसे क्या सुनाएँ, किसे क्या बताएँ
ये माना विवश हो चली ज़िन्दगी अब
मगर एक-दूजे की हिम्मत बढ़ाएँ
बहारें चली आएँगी ख़ुद-बख़ुद ही
चलो अबके सावन में पौधे लगाएँ