चार बार केंद्र निर्धारण फिर भी खामियां बरकरार
प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भइया) राज्य विश्वविद्यालय की स्नातक वार्षिक परीक्षा 2019-20 में केंद्र निर्धारण अब तक चार बार किया जा चुका है। बावजूद इसके कई केंद्र अभी भी मानक के विपरीत हैं। ऐसे में परीक्षार्थियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार विवि प्रशासन के पास आपत्तियां पहुंच रही हैं लेकिन उन्हें केवल टाला जा रहा है।
मंडल के चारों जनपदों (प्रयागराज, कौशांबी, फतेहपुर और प्रतापगढ़) में राज्य विवि से संबद्ध महाविद्यालयों की वार्षिक परीक्षाएं तीन मार्च से शुरू हैं। 16 फरवरी को पहली बार 244 परीक्षा केंद्र बनाए गए। सूची जारी होते ही विवि विवादों में घिर गया। दैनिक जागरण ने प्रमुखता से खबर प्रकाशित किया तो कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर 22 फरवरी को 274 केंद्रों की अंतिम सूची जारी की गई। तीसरी बार फिर 26 फरवरी को नए सिरे से 298 केंद्रों का निर्धारण किया गया। तीन मार्च को परीक्षाएं शुरू करा दी गईं।
चौथी बार परीक्षा के बीच में अचानक मंडल के 74 केंद्रों में बदलाव कर दिया गया। इसके बावजूद खामियां दूर नहीं की जा सकीं। इसके लिए रोजाना आपत्तियां पहुंच रहीं हैं। ताजा उदाहरण प्रतापगढ़ जनपद का है। यहां बिहार के पुवासी स्थित बीएन सिंह स्मारक महाविद्यालय का केंद्र 31 किलोमीटर दूर संतराज संजय महाविद्यालय डीहा कुंडा बना दिया गया है। ये तो महज बानगी है, ऐसे कई केंद्र अभी भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस संदर्भ में कार्यवाहक परीक्षा नियंत्रक प्रभाष द्विवेदी से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो सकी।
बारिश ने मचाया धमाल,जमकर हुई बर्फबारीफसलों पर पड़ा गहरा प्रभाव, रबी की फसल हुई नष्ट
कौशाम्बी। म्योहर क्षेत्र में भारी बारिश के साथ - साथ गिरे ओले, जिससे फसलों पर काफी नुकसान होने अनुमान लगाया जा रहा है। सुबह से मौसम का रुख सही नहीं दिख रहा था, बादल अपना रंग दिखा रहे थे,तभी अपराह्न में बारिश के साथ ओले भी गिरने लगे, ओले को देखकर किसानों के चेहरों पर मायूसी छा गई है। मानव का जीवन भी पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है।भारी ओले के साथ सभी लोग छिपे घरों में, मची तबाही । एक तरफ ओलों में से भागकर घुसे मकानों में दुकानदार, वहीं दूसरी तरफ कहीं कहीं पर हल्की बारिश हुई तो कहीं - कहीं पर ज्यादा बारिश हुई लेकिन बारिश का नया रूप देखने को जब मिला तब बारिश के साथ - साथ बहुत बड़े - बड़े ओले भी गिरने लगे।लोगों का मानना है कि ऐसा प्राकृतिक कहर बहुत वर्षों बाद देखने को मिला है लेकिन एक बाद तो साफ जाहिर है इस ओले ने किसानों की खुशी के रंग में भंग कर दिया है, अधिकांशतः फसलें पूरी तरह से नष्ट हो गयी है।