सरकारी अस्पताल का हाल बेहाल


 कोविड़ से संक्रमित शहर के प्रख्यात सर्जन ने इलाज के अभाव में  तोड़ा दम


डॉक्टर पत्नी ने उठाये अस्पताल की व्यवस्थाओं पर कई सवाल कहा

नहीं था वेंटिलेटर

 सही समय पर वेंटिलेटर मिलता तो बच जाती जान,जूनियर डॉक्टरों के भरोसे   पूरा अस्पताल

देखते ही देखते  डॉक्टर पत्नी की नम आंखो के सामने उजड़ गया  उनकी मांग का सिंदूर

सुधीर सिन्हा 

ब्यूरो चीफ प्रयागराज 

 प्रयागराज इसे दुर्भाग्य नही तो और क्या कहा जायेगा कि जिस सरकारी अस्पताल में लगभग पांच दशकों तक जिस डॉक्टर ने  अपनी सेवाओं को दिया,  जिससे उपचार की ट्रेनिग लेकर न जाने कितने डॉक्टर देश ही नही बल्कि विदेशों में मरीज़ों का उपचार करके उन्हें नई ज़िंदगी प्रदान कर रहे हैं ऐसे वरिष्ठ डॉक्टर जब खुद कोरोना संक्रमित हो गए तो उन्हें न तो कोई डॉक्टर मिला न ही नसीब हुवा वेंटिलेटर ।जिसके चलते प्रयागराज के एक मशहूर  डॉक्टर ने अपनी पत्नी की निगाहों के सामने उसी अस्पताल में दम तोड़ दिया  जहां पर रहकर उन्होंने बाईमानदारी तीमारदारों की सेवा की थी।

जी हां यही कहानी है प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की वरिष्ठ गायनोकोलॉजिस्ट व प्रोफेसर रही  80 वर्ष की डॉक्टर रमा मिश्र और उनके पति डॉक्टर जे.के.मिश्रा( सर्जन) की  जो  कोरोना  की चपेट में आ गए थे और रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अपना अस्पताल समझते हुवे  दोनों इसी सरकारी अस्पताल में इलाज के वास्ते भर्ती हो गए।डॉक्टर रमा की मानी जाय तो वो इस संक्रमण की जद से शीघ्र ही बाहर आ गईं परन्तु बीते चार दिनों पूर्व उनके पति पर मौत हावी हो गई जिसके चलते डॉक्टर मिश्रा ने उनकी आंखों के सामने ही लोगो की बेरुखी के चलते दम तोड़ दिया।

पति की मौत के बाद डॉक्टर रमा मिश्रा के द्वारा सरकारी अस्पताल की सेवाओं को लेकर कई सवाल उठाए गए जो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं।डॉक्टर रमा का कहना है कि जब दोनों लोगो की रिपोर्ट पॉजीटिव आई तो हम लोग होम क्वारन्टीन में रहे ,परन्तु जब उनका आक्सीजन लेविल कम हुवा तो ये देख मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने सरकारी अस्पताल में इलाज के वास्ते भर्ती होने की सलाह दी।हालांकि जिस वक्त इन्हें डॉक्टरों ने सलाह दी अस्पतालों में बेड की काफी क़िल्लत थी और 13 अप्रैल को अस्पताल के कोविड़ वार्ड में मात्र एक ही बेड मिल सका जिसके चलते डॉक्टर रमा रात  वहीं अस्पताल के फर्श पर ही पड़ी रहीं क्योकि उन्हें बेड नसीब नही हो सका था और 14 अप्रैल को उन्हें बेड  उपलब्ध कराया गया।डॉक्टर रमा का कहना है कि उस रात मेरे पति को कोई इंजेक्शन दिया गया वो क्या था ये जानने का उन्होंने काफी प्रयास किया मगर किसी ने कुछ नही बताया कि उनके पति को कौन सा इंजेक्शन दिया गया है यही नही 14 अप्रैल की सुबह उनके पति को फिर से कोई इंजेक्शन लगा दिया गया। स्थितियाँ काफी भयावह थी, यहां पर रातभर उन्होंने जो देखा वो काफी खौफ़नाक मंजर था।रात भर मरीज तड़फते रहे चिल्लाते रहे वो बार बार अपनी जिंदगी को सेफ करने के लिए डॉक्टरों से गुहार लगाते रहे मगर कीड़ी ने उनकी एक न सुनी न ही कोई डॉक्टर वहां आया हां बीच बीच मे नर्स जरूर आती रहीं य जो भी जूनियर डॉक्टर  वहां आता वो उन्हें डांटकर चुप करा देता था या कोई इंजेक्शन चुभो कर चला जाता था मगर जब उनकी आंखों के सामने  ही मरीज तड़फते थे तो कलेजा मुंह को आ जाता था मगर वो चाह कर भी कुछ नही कर सकीं क्योकि वो खुद एक मरीज की तरह  भर्ती थी वरिष्ठ डॉक्टर होने के बावजूद भी उनकी कोई सन्नी वाला नही था। पति की मौत हो जाने से दुःखी  डॉक्टर रमा मिश्रा भी खुल कर बोली उन्होंने ये भी जानकारी देकर कहा कि वो लोग जब वहां पर भर्ती हुवे तो अस्पताल में कोरोना के एक अफसर जो उनकी ही जूनियर रहे हैं वो भर्ती होने के 24 घण्टे के बाद जब वहां आये तो हम दोनों को देख कर चौक पड़े और हंसते हुवे बोले कि अरे एस्प लोग यहां कैसे आ गए?उनके मुंह से ये सुनते ही हम दोनों शॉक्ड हो गए हमारा ही जूनियर जिसे हमने चलना सिखाया वो हमसे इस तरह की बात बोल रहा है वो इस वक्त अपना फ़र्ज़ न निभा कर हमसे भद्दा मजाक कर रहा था मगर हम चाह कर भी कुछ न कर सके केवल खून का घूट पीकर रह गए।

इनका ये भी आरोप है की इस अस्पताल में रात में कोई भी वार्ड ब्यॉय  तक नही रहता था और पूरा अड़पताल जूनियर डॉक्टरों के हवाले था जो यदा कदा आते थे और फर्जअदायगी करके केवल आक्सीजन का लेवल चेक करके वापस लौट जाते थे उन्हें इस बात का कोई इल्म नही यह कि उन्हीं के विभाग य अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर भी उनकी देख रेख में भर्ती है।लगातार तीन दिनों तक यही चलता रहा मगर जब अचानक 16 अप्रैल को  हमारे पति डॉक्टर जे.के.मिश्रा की तबियत अचानक से ज्यादा ख़राब हो गई उनका आक्सीजन लेविल काफी कम हो गया, ये देख कर जब एक इंस्टूमेंट और लगाया गया तब उससे उनकी सांसे उखड़ने लगी।ये देख मैंने वहां मौजूद एक व्यक्ति से जब इस बारे में कहा तो उसने बड़ी लापरवाही से  जवाब दिया कि ये सब तो कोविड़ की बीमारी में होता ही रहता है।मै मजबूर थी क्योंकि इस अस्पताल के भूतल पर एक भी वेंटिलेटर नही था जिससे पति को हो रही दिक्कतों को कम किया जा सके। यही नहीं एक महिला डॉक्टर भी दूसरी मंजिल से वेंटिलेटर लेन की व्यवस्था को कह रही थी मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी और डॉक्टर साहब ने मेरी निगाहों के सामने ही देखते ही देखते दम तोड़ दिया।

अब इसे सरकारी अस्पताल की बदहाली कहे य कुछ और कि जिस अस्पताल में शहर के वरिष्ठ सर्जन ने इलाज के अभाव में अपना दम तोड़ दिया वहीं पर बा ईमानदारी से उसी डॉक्टर ने लगभग पांच दसको तक अपनी सेवाओं को प्रदान कर न जाने कितनों को नई जिंदगी प्रदान की मगर वो हार गए अपनो से ही।यहां के डॉक्टरो की बेहयाई इतने पर भी नही रुकी उन्होंने अपना पल्ला झाङते हुवे ये कह दिया कि डॉक्टर जे.के.मिश्रा की मौत कॉर्डियक अरेस्ट से हो गई है।वहीं अपनी आंखों के सामने अपने ही सुहाग का दम तोड़ने वाले हृदय विदारक दृश्य देखने वाली प्रयागराज की वरिष्ठ गायनोकोलॉजिस्ट व प्रोफेसर रहीं 80 वर्षिय डॉक्टर रमा मिश्रा की नम आंखों से बहते आंसू  भी शायद यही बयां कर रहे थे कि आज जहां पर उनके पति ने  अपनो  को डॉक्टरी सिखाई थी अगर  उन्होंने सही तरीके से  उनका साथ दिया होता तो औरों की तरह उनका सुहाग भी उनकी आंखों के सामने होता।