स्वामी आनंद गिरि बाघम्बरी मठ के साथ निरंजनी अखाड़े से निष्कासित

 


 परिवार से सम्बंध रख सन्त परम्परा का नही कर रहे थे निर्वहन

अखाड़े की सम्पत्ति में भी हेरा फेरी का आरोप

सुधीर सिन्हा 

ब्यूरो चीफ़ प्रयागराज

   प्रयागराज : के कोतवाल यानी बंधवा के लेटे हुवे हनुमान  मंदिर के छोटे महंत योगगुरु स्वामी आनन्द गिरी को बाघम्बरी मठ के साथ ही निरंजनी अखाड़े से निष्काषित कर दिया गया। उनके ऊपर सन्त परम्परा के ख़िलाफ़ जाकर अपने परिवार से लगातार सम्बन्ध बनाये रखना अखाड़े की सम्पत्ति को चोरी छुपे अपने घर भेजना व   चेतावनी दिए जाने के बाद भी आचरण में सुधार न लाने पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत नरेंद्र गिरि ने अपने ही  शिष्य योगगुरु स्वामी आनंद गिरि पर की गई कार्रवाई की पुष्टि खुद परिषद अध्यक्ष ने  खुद की      महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य होने के कारण योगगुरु आनन्द गिरी  को अखाड़े के सबसे मजबूत लोगों में माना जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से गुरु और शिष्य के बीच में मतभेद किसी न किसी रूप में दिखता रहा। हालांकि सार्वजनिक मंच पर कभी न तो महंत नरेंद्र गिरि ने योगगुरु के खिलाफ टिप्पणी की और न ही स्वामी आनंद गिरि ने कभी महंत नरेंद्र गिरि पर किसी प्रकार का बयान जारी किया। महेंद्र गिरी का कहना है कि नासिक,उज्जैन,प्रयागराज व 

हरिद्वार  कुम्भ में  इन्होंने अपने पूरे परिवार को बुलाया था जबकि अखाड़े की परंपरा के अनुसार  योग गुरु अपने माता-पिता का सम्मान कर सकते हैं लेकिन परिवार से सम्बन्ध नही रख सकते है।इन्हें एक दो बार समझाया गया चेतावनी भी दी गई  मगर जब वो नही माने तो कठोर कार्यवाही करते हुवे उन्हे पहले बाघम्बरी मठ से हटाया गया वही  पारिवारिक मोहमाया में लौट जाने के कारण शुक्रवार को सन्यास

 परंपरा के उल्लंघन में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी की कार्यकारिणी ने संत आनंद गिरि को अखाड़ा से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है । ज्ञास्तव्य हो कि 13 मई को रुड़की हरिद्वार विकास प्राधिकरण ने श्यामपुर कांगड़ी में संत आनंद गिरि का निर्माणाधीन तीन मंजिला आश्रम सील किया था। 

         अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी के मुताबिक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि का पंच परमेश्वरों को एक शिकायती पत्र मिला था जिसमे  संत आनंद गिरि के संन्यास परंपरा के उल्लंघन का जिक्र किया  गया था।

महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि योगगुरु ने नासिक, उज्जैन, प्रयागराज और हरिद्वार कुम्भ में अपने पूरे परिवार को बुलाया था। जबकि अखाड़े की परंपरा के अनुसार परिवार से सम्बंध नहीं रखा जा सकता है। माता-पिता का सम्मान किया जा सकता है, लेकिन अखाड़े की एक परंपरा है। एक माह पूर्व दी गई चेतावनी के बाद भी जब वे नहीं माने तो उन्हें पहले बाघम्बरी मठ से हटाया गया। बाद में शुक्रवार को अखाड़े से निष्कासन की कार्रवाई की गई है। इस बारे में जब स्वामी आनंद गिरि से पूछा गया तो उन्होंने फिलहाल किसी टिप्पणी से इनकार कर दिया है।

वहीं श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव महंत नरेंद्र गिरी के प्रिय शिष्य को अखाड़े से निकाले जाने के बाद से कई सवाल भी उठने लगे हैं।महंत नरेंद्र गिरी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं वहीं निरंजनी अखाड़े के सचिव भी होने के चलते उनका कद अखाड़े में काफी ऊंचा है।अचानक की गई कार्यवाही के बाद ये सवाल उठ गया है कि क्या सिर्फ़ परिवार से सम्बन्ध रखने का मामला है य फिर विवाद अखाड़े की सम्पत्ति को लेकर है  फिर कोई और बात है।

बताते चले की  गत दो साल पहले आस्ट्रेलिया में विदेशी महिला के साथ उत्पीड़न का मामला जब योग गुरु स्वामी आनन्द गिरी पर लगा था तब महंत नरेंद्र गिरी ने आखिरी समय तक उनका साथ नही छोड़ा था और उन्होंने कहा था कि स्वामी आनन्द गिरी एक योग सन्त हैं और उनको बदनाम करने की ये साजिश है।वही जब आनन्द गिरी आस्ट्रेलिया  के केस से बरी होकर  लौटे  तो वो सबसे पहले अपने गुरु का आशिर्वाद लेने के लिए सीधे उनके पास गए थे तब इस प्रतीत हुवा की महंत नरेंद्र गिरी योग गुरु से  बहुत खुश नही थे।इसके बाद दूसरा प्रकरण महंत आशीष गिरी की मौत के बाद उभरा।उस वक्त अखाड़ा जब चारो तरफ से घिर गया और मठ की सम्पत्ति को लेकर चौतरफा जब सवाल उठने लगे तब योग गुरु ने अपने को अखाड़े का सदस्य बताया था,और खुद मठ से अलग -थलग रहे।दोनों के बीच खटास इस कदर बाद गई कि जब 2019 में प्रयागराज का कुम्भ था य चादरपोशी के साथ अन्य कोई कार्यक्रम दोनों ही सन्तो को एक साथ बहुत कम देखा गया। जबकि चादर पोशी जब भी होती आनन्द गिरी पहुंचते जरूर थे मगर उन्होंने ऊना अधिकांश समय गंगा सेना में ही देना उचित समझा।इनके खिलाफ ये भी चर्चा है कि विशेष कर्ता धर्ता होने के कारण ये मठ और मंदिर की सम्पत्ति को भी अपने घर भेजते थे।बड़े हनुमान मंदिर के प्रधान महंत वैसे तो निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत नरेंद्र गिरी ही है वहीं लंबे समय तक इन्होंने आनन्द गिरी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था वही अब सवाल ये है कि अखाड़ा और मठ से निकाल दिए जाने के बाद मंदिर का महंत कौन होगा ,इस बात को लेकर फिलहाल दोनों पक्ष में  गहरा विवाद है।