नारी रुप बन शक्ति जब विश्व प्रकाश बनती,
अध्यापिका का रुप बन जब विद्या प्रसार करती।
दुलारी बेटी बन सब रिश्तॉ की माला पिरोती,
पुरुष के कदम से कदम मिला हर पल चलती।
माँ बन सबको अपने आँचल में भर अपना लेती,
देश की रक्षा करने को सीमा पर पहरा देती।
सेवा के लिए तत्पर सबके जिवन में रस भर देती,
मन ही मन में सबके मन की बात नारी समझती।
सबका दुखदर्द सह, धेर्य,साहसी पराक्रमी बनतीं ।
बाबुल का घर छोड़, ससुराल की खुशी सजाती ,
अपनी हकिकत जान कर बंजारन खुश हो जाती।
खेतों में जाकर फसलो से पृथ्वी पर सोना उगाती,
सारे त्यवहरॉ को मना सब धर्म का सम्म्मान करती।
"रश्मि"इस प्यारे संसार में मगन हो मंगल गीत गाती ,
शक्ति बन अन्तर राष्ट्रिय महिला दिवस मनाती ।
डॉ रश्मि शुक्ला (समाज सेविका)
अध्यक्ष समाजिक सेवा एवम् शोध संस्थान
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
सब दिन होत न एक समान
मैने सीखा मौसम से जो रहता नही एक समान,
हमारा जीवन मौसम सा परिवर्तन सब करो सम्मान।
आज जीवन में बड़ी तपन है तो न धबराना प्यारे,
हिम्मत रखना डटे रहना मिट जाएगें गर्दिश के तारे।
जीवन के दिन धूप छाँव से आते और जाते रहते,
पथिक बन हम सब काहे यह सन्देश समझ न पाते।
वनउपवन जाकर जब देखा पतझड से सब मुरझाए,
मैने देखा समय कुछ बाद बाग बगीचा सब हरियाए।
तब जाना महसुस किया सब दिन होत न एक समान,
न डरना अब न रूकना तन मन से बन जाओ बलवान।
हर्षित होकर मानव सेवा कर जग में होगा तेरा नाम ,
मानव जीवन पाकर व्यर्थ न जाए आओ सबके काम।
जीवन मे ठंडे ठंडे बादल समान दिन जल्दी ही आएगें,
'रश्मि 'सखीयन संग मिल जुल कजरी मल्हार गाएंगे।
डॉक्टर रश्मि शुक्ला(समाज सेविका)
सामाजिक सेवा और संस्थान (अध्यक्ष)
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश