अजामिल जी और उनकी साईकिल कथा।

 अजामिल जी और उनकी साईकिल कथा।

उन्हीं की ज़ुबानी सुनिए:
मेरे एक मित्र हमेशा कहा करते थे मैं तुम्हें सब कुछ दे सकता हूं अपनी जान तक लेकिन मुझसे साइकिल मत मांगना। पहले के दौर मैं लोग साइकिल मांग लिया करते थे। साइकिल दहेज दे दी जाती थी मेरे पिता ने मेरी शादी के बाद मेरी पत्नी से पहला सवाल पूछा था, जाओ साइकिल चला लेती है मेरे पिता उसे मुंह दिखाई में साइकिल देना चाहते हैं। मेरी जब नई साइकिल आई मेरे मित्रों ने मुझसे बॉबी फिल्म देखी थी बहुत सारी यादें हैं। आज मेरी पत्नी भी नहीं है और साइकिल भी नहीं है ।
यह दोनों मुझे हमेशा सक्रिय बनाएं रहे और दोनों ने मुसीबत में काम किया मुझे वहां तक ले गए जहां में जाना चाहता था।
-अजामिल
(यह फोटो मैंने समानान्तर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के बाद छात्रसंघ भवन, इलाहाबाद वि. वि , प्रांगण में उतारी थी।संभवत: अजामिल जी के पास न हो।
अजामिल जी आपकी साईकिल और सारी आपकी यादें हम लोगों के जेहन में हैं।संजोकर रखें हैं।)