सुमन जैन ''सत्यगीता''
हे सांवरे !
ज़िन्दगी गुजर गई
तेरा इंतज़ार करते-करते,
हर चेहरा तुझ सा था मगर,
वो तू नहीं था..
संसार का प्रेम
मृगमरीचिका सा लुभाता रहा हर बार
खिंचती चली गई मैं
सम्मोहित सी, कदम दर कदम
लेकिन ,हर बार
सूखी रेत के अतिरिक्त
हाथ कुछ भी नआया..
लेकिन, इस बार
मेरे मनमीत !
मैं नहीं,
आना होगा तुमको ही मुझ तक,
उतरना होगा
इस नन्हीं सी बूंद में
सागर बनकर,
तुम आओगे ना सांवरे ?