पोप फ्रांसिस ने 1 जून को 40 वर्ष के बाद कैथोलिक चर्च के कानूनों (कैनन लाॅ, जो पूरी दुनिया में कैथोलिक चर्च के सदस्यों पर लागू होता है) में संशोधन करते हुए यौन शोषण के मामलों में कड़े दंड के नियम बनाए हैं। वेटिकन अपने ही बनाए नियमों पर दो सप्ताह भी नहीं टिक सका। बिशप फ्रेंको मुलक्कल पर बलातकार - याेन शाेषण का आराेप लगाने वाली नन लुसी कलापुरा के निष्कासन को चुनौती देने वाली तीसरी याचिका को वेटिकन ने खारिज कर दिया है और नन काे कान्वेंट छोड़ने के आदेश दिए हैं।
आरोपी बिशप तो सुख - सुविधाओं सहित रह सकता है, परंतु पीड़ित के लिए कैथोलिक चर्च अपने दरवाजे बंद कर रहा है। कम से कम भारतीय न्यायालय का फैसला आने तक वेटिकन काे मानवीय आधार पर नन काे निष्कासित करने से रुकना चाहिए था। हमारा यह मानना रहा है कि चर्च और वेटिकन कभी भी पीड़ितों के लिए खड़े नहीं हुए उन्होंने हमेशा मामलों पर पर्दा डालने और पीड़ितों को डराने, बदनाम करने का काम किया है।
ऐसे मामलों का खुलासा करने वालों के लिए यह अकेले युद्ध लड़ने जैसा होता है। "चर्च उन्हें बहिष्कृत कर देता है या फिर उन्हें अपने ही समुदाय के भीतर अलग-थलग कर दिया जाता है"। यही सिस्टर लुसी कलापुरा के साथ हाे रहा है। जीजस उसकी रक्षा करे।